ट्रांसफार्मर की बनावट किस प्रकार होती है
इसकी दो इंसुलेटिड कोइल आयरन कोर पर लपेटी होनी अवश्यक है किसी एक कोइल से सिरे मे यदि ऑलटरनेटिंग लगा दिया जायेगा तो वह परिवर्तित फ्लक्स पैदा करेगा और यह फ्लक्स पास की फ्लक्स मे भी इंड्यूस्ड पैदा कर देगा इस दूसरी कोइल मे कितना इंड्यूस्ड होता है, कोइल की टर्न पर निर्भर करता है | जिस कोइल के साथ अल्टरनेटिंग जोड़ा जाता है उसको प्राइमरी कोइल कहते है और जिस कोइल के इंड्यूस्ड पैदा होती है उसे ट्रांसफार्मर की सेकेंडरी कोइल कहते है | आयरन कोर का प्रयोग करने का उद्देश्य ट्रांसफार्मर की प्राइमरी और सेकेंडरी के अंदर सुगम पथ तैयार करना होता है | नरम लोहे की कोर पतली पतली पत्तियों की बनी होती है और इनको एक दूसरे से इन्सुलेट कर दिया जाता है | इस प्रकार ट्रांसफार्मर के एड़ी करंट लॉस काम हो जाते है |
ट्रांसफार्मर के प्रकार
(a) स्टैप अप
स्टैप अप ट्रांसफार्मर – जिस ट्रांसफार्मर्स में सेकेंडरी में इंडयूस्ड वोल्टेज प्राइमरी की सप्लाई वोल्टेज से ज्यादा होती है उनको स्टैप अप ट्रांसफार्मर कहते है |
(b) स्टैप डाउन
स्टैप डाउन ट्रांसफार्मर – जिस ट्रांसफार्मर में सेकेंडरी में इंड्यूस्ड वोल्टेज प्राइमरी की सप्लाई वोल्टेज से काम होती है उसको स्टैप डाउन ट्रांसफार्मर कहते है |
(c) इन्सोलेशन
इन्सोलेशन ट्रांसफार्मर – अगर सेकेंडरी में इंडयूस्ड वोल्टेज प्राइमरी के श्रोत्र वोल्टेज के बराबर है तब वह ट्रांसफार्मर इन्सुलेशन ट्रांसफार्मर कहलाता है |
ट्रांसफार्मर के लाभ
(1) क्योकि यह स्टेटिक यन्त्र है इसलिए इसमें टूट फुट काम होती है |
(2) इसके रख रखाव की कीमत बहुत काम है क्योकि इस पर कम ध्यान देना पड़ता है |
(3) क्योकि इसमें घूमने वाले पुर्जे नहीं होते , इसलिए इसकी वाइंडिंग अच्छी तरह इन्सुलेट करके बहुत अधिक वोल्टेज ट्रांसफार्मर की जा सकती है |
(4) ट्रांसफार्मर एक बहुत उम्दा मैचिंग यन्त्र है |
ट्रांसफार्मर की हानिया
(1) ट्रांसफार्मर की ज्यादा ऊर्जा को गर्मी मे परिवर्तन कर देती है जिससे ट्रांसफार्मर बहुत जल्दी गर्म हो जाता है |
(2) ट्रांसफार्मर एक स्टेटिक यन्त्र है इसमें टूट फुट होने के कारण यह ख़राब भी हो सकता है |